लेखनी कहानी -30-Nov-2021 ज़िन्दगी का रंगमंच
*ज़िन्दगी का रंगमंच*
"दीपू की अम्मा , जरा झाड़ू लेकर यहां तो आ ,देख कितना बड़ा मकड़ी का जाल है ,तू रोज़ झाड़ती है, तुझे दिखाई नहीं देता "!!
"अरे, दीपू की अम्मा चल आज जरा चूल्हा जला दे, गर्म पानी कर दे"!!
""दीपू की अम्मा ,आज तेरा काम हो जाए तो जरा मेरे बालों में मेहंदी लगा देना ""!!
इस तरह की आवाजें दिन भर घर में सुनाई देती रहती थी। जब मै शादी हो कर इस घर में आई तब देखा मेरी सासू मां का क्या घर के किसी भी सदस्य का कोई काम दीपू की अम्मा के बग़ैर होता ही नहीं था ।घर के हर सदस्य के लिए दीपू की अम्मा एक जीता जागता अलाउद्दीन का चिराग थी ,जिसे बुलाया और अपना काम सौंप दिया ।
दीपू की अम्मा एक निम्न वर्ग की वो महिला है, जिसका पति कोई रोजगार नहीं करता ।दिन भर घर में पड़ा रहता ,और कोई कुछ कहता तो उसका गुस्सा दीपू की अम्मा के ऊपर निकलता ।कभी उसे मारता तो कभी बेइज्जत करता ।उसके वाबजूद भी अपने बच्चों और नकारा पति का पेट पालने के लिए घरों में काम करती !!
बस्ती के लोग ,और उसे पहचानने वाले लोग उसे दीपू की अम्मा के नाम से ही बुलाते । दीपू उसके बेटे का नाम था।
ज़िन्दगी के लिए , ज़िंदगी से लडने वाली इस महिला का अपना कोई नाम नहीं बचा था ।
मेरी उत्सुक प्रवृत्ति ,और जिज्ञासु होने के कारण घर के सभी सदस्यों को जानने के अलावा दीपू की अम्मा मेरी सोच का केंद्र बिंदु बन गई थी ।धीरे धीरे उससे खुलकर बातें करने लगी थी। वो भी छोटी भाभी कहती और मन की बातें करने लगती ।
मैंने कई बार पूछा "सब तुम्हें दीपू की अम्मा कहते हैं,तुम्हारा सही नाम क्या है""?
मेरी इस बात पर हंसती और कहती " अरे!छोटी भाभी मेरा नाम क्या है, ये तो मैं कब का भूल गई " । अब तो यही नाम हो गया है मेरा "!
मैंने कहा " फिर भी बताओ पहले कहां रहती थी और सब क्या कहके बुलाते थे तुम्हें "?? तुम्हें कभी अपनों की याद नहीं आती क्या ??
दीपू की अम्मा " हां!! भाभी याद तो बहुत आती है,पर क्या करें ,घर गृहस्थी में ऐसे उलझी की मां बाप , भाई बहन सब भूल गई !!
बहुत पूछने के बाद ही उसने बताया __""भाभी तुम इतना पूछ रही हो तो बताए देते है , हम बिहार में सेझाई गांव में रहते थे, और सब हमें चमेली कहते थे।चमेली नाम है हमारा "!! पर अब तो हम दीपू की अम्मा ही हो गए हैं,"!!
एक दिन दोपहर के बारह बजने को आए लेकिन दीपू की अम्मा नहीं आई , राह देखते हुए शाम हो गई पर उसका कोई पता ठिकाना नहीं था।
घर का हर सदस्य इसी उधेड़ बुन में लगा कि आखिर क्यों नहीं आई दीपू की अम्मा??
अगले दिन जब सुबह जब आई तो उसे देखते ही सासू मां बरस पड़ी __"क्यों री दीपू की अम्मा कल कहां थी तू"??
क्यों नहीं आई?? और अगर काम पर नहीं आना था तो खबर भेज देती "!!
दीपू की अम्मा__"अरे , मां जी खबर किससे भेजती ?"वो कल रात दीपू के बापू ने दारू पी कर बस्ती में झगड़ा कर डाला , तो मेरे बेटे को और उसके बापू को पुलिस पकड़ कर ले गई ,"!
"मां जी रात भर पुलिस थाने मे बैठी रही,थानेदार को बहुत बोला की छोड़ दे ,पर उसने नहीं छोड़ा ,दिन में पैसो का इंतजाम करके दोनों को छुड़ा कर लाई "!!
"क्या बताऊं मां जी कल बहुत परेशान हुई ,घर में चूल्हा भी नहीं जला "!!
मां जी__"" अरे!! तो तू यहां आकर बताती ,हम ही कुछ मदद कर देते ", और तू बोलती है कि तेरा पति कोई काम धंधा नहीं करता तो उसके पास जुआं खेलने और दारू पीने के पैसे कहां से आते हैं,बता""!!
दीपू की अम्मा__""अरे मां जी क्या क्या बताऊं आपको ,कहीं से भी उधार मांग लेता है, और देने वाले मेरे पास आते है कि तेरे मर्द ने पैसे लिए थे दे वापस नहीं तो पुलिस बुलाते हैं ""!!
मां जी __"तो तू क्यों लाई उसे छुड़ा कर ,पड़ा रहता चार दिन हवालात में तो अक्ल ठिकाने आ जाती ,पर तू मानती कहां है,तू रात दिन इतनी मेहनत मजुरी करती है,और तेरा पति समझता ही नही""!!
दीपू की अम्मा__""अब मां जी जो भाग्य मे बदा है सो भुगतना ही पड़ेगा "!
और अपने भाग्य को कोसती हुई ,दीपू की अम्मा लग गई अपने काम में ।
हमारे समाज की न जाने कितनी ही महिलाएं इस प्रकार का जीवन जीती हैं।जिसमे वो मुख्य भूमिका को निर्वाहन करती हैं ,लेकिन रहती हमेशा उपेक्षित ही ।
देखते देखते समय निकलता गया और एक दिन मां जी __""देख !!" दीपू की अम्मा छोटी भाभी का पूरा टाइम चल रहा है,तू यहां वहां मत जाना ,रात बिरात जब भी जरूरत होगी ,तुझे बुला लेंगे ,तू न नूकार मत करियो"!!
दीपू की अम्मा__""मां जी मुझे पता है,आप ऐसा क्यों बोल रही हो""?आप जब बोलोगी तो मै आ जाऊंगी ,इतनी खुशी की बात है,भला क्यों नहीं आऊंगी मैं ""!!!
और अगले दो दिन बाद ही दीपू की अम्मा को अपना वादा पूरा करने रात में ही आना पड़ा! लगातार बारह घंटे की प्रसव पीड़ा को सहना मेरे लिए असहनीय था लेकिन दीपू की अम्मा मेरे लिए, किसी परमेश्वर से कम ना थी ! कभी मेरी कमर में हाथ फेरती , कभी पैरों को दावती और ,अपनी बातों से दिलासा देती !उस असहनीय पीड़ा मे उसकी बातें किसी मां की सीख से कम ना थी ! मेरे अस्पताल से आते ही दीपू की अम्मा का काम अब दुगना हो गया था!
समय की तपन और ज़िंदगी की लड़ाई में दीपू की अम्मा कभी खुश तो कभी उदास नजर आती, पर हिम्मत हारते कभी नहीं देखा !उसके पास ज़िंदगी को रोशन करने वाली एक आशा की किरण अगर थी तो वह थी उसका बेटा ,जब बहुत थक जाती तो कहती _"" बस मां जी मेरा दीपू जल्दी से कोई काम धंधा करने लगे तो मै भी आराम से घर में रहूंगी "!!
अब जैसे दीपू की अम्मा के सपने साकार होने लगे थे!दीपू बाईस साल का हो गया था ! पढ़ाई तो नहीं कि ज्यादा पर एक होटल में वेटर की नौकरी करने लगा था !महीने का पांच छः हजार कमा कर लाने लगा था जिससे दीपू की अम्मा की परेशानी कम हो गई थी !
दीपू की अम्मा__""दीपू बेटा , तू होटल जा रहा है तो मुझे भी मां जी के घर छोड़ दे ""!
दीपू __""मां!! अब तू ये काम करना छोड़ दे ,मै तो कमाता हूं ना अब , तू आराम से घर पर रहा कर "!!
दीपू की अम्मा__""हां ,हां छोड़ दूंगी काम ,पर पहले मां जी को कोई दूसरी नौकरानी मिल जाने दे, अब ऐसे एकदम तो नहीं छोड़ सकती ना काम ,आखिर इतने दिन उनका नमक खाया है ""!!
दीपू __"ठीक है, पर तू उनको बोल दे कि ,अब तू ज्यादा दिन तक काम नहीं करेगी उनका ""!!
दीपू की अम्मा__"ठीक है,बोल दूंगी , अब चल ""!!
काम करते हुए दीपू की अम्मा बोली __""मां जी मै कोई दूसरी नौकरानी लगवा दूं आपके यहां , वो अब दीपू मुझे काम पर आने नहीं देता ,कहता है , अम्मा तू घर में रह अब मै कमाने लगा हूं ""!!
मां जी__"" ठीक है दीपू की अम्मा पर तेरे जैसा काम कोई दूसरी नौकरानी कहां करेगी , अब जैसा होगा तो देख लूंगी , पर तू आती जाती रहना !!
""अच्छा है अब सही मे तुझे भी आराम की जरूरत है ""!!
दीपू की अम्मा__""हां , मां जी मिलने तो आऊंगी ,आपसे मेरा भी मन कहां लगेगा ,आप लोगों के बिना !!
अभी साल भर ही बीता था कि अचानक एक दिन दीपू की अम्मा आई और मां जी से कोई काम पर लगाने की बात करने लगी !!
मां जी __""आ दीपू की अम्मा ,बहुत दिन बाद आई तू ,बहू बेटे ,नाती में इतना रम गई कि तुझे अब किसी की याद नहीं आती ""!!!
दीपू की अम्मा __""याद तो बहुत आती है मां जी , क्या बताऊं मुसीबतों ने कहीं का नहीं छोड़ा मुझे ""!!
मां जी __"क्यों क्या हुआ ??सब ठीक तो है!!
दीपू की अम्मा__""मां जी मेरा तो जीवन ही बरवाद हो गया ,एक रात दीपू काम से घर वापस आ रहा था तो एक कार वाले ने दीपू की साइकिल को टक्कर मारी और मेरा दीपू लहूलुहान हो गया ,अस्पताल लाते ही , चल बसा ""!!
""मां जी मेरा दीपू चला गया ,मेरी ज़िन्दगी की आश बुझ गई , अब जान जबान बहू को कहां काम पर भेजूं ,और दूध पीता बच्चा कैसे छोड़ कर जाएगी इसलिए मै ही निकली हूं , अब बहू और नाती को किसके हवाले छोड़ू , मां जी इनका भी पर पालना है अब मुझे ही ""!!!
इतना कह फबक फाबक कर रोने लगी ।दीपू की अम्मा के मुंह से इतना सुनते ही हमारे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई ! उसकी असहनीय पीड़ा और करुणा , आंखो से गिरते हुए आंसू उसकी बेदर्द ज़िन्दगी को फिर से तलाशने लगे थे !
किस्मत के हाथों की ये कठपुतलियां ज़िंदगी के रंगमंच पर अपना किरदार निभाते निभाते टूट जाती हैं, पर अपने किरदार से बाहर निकलना इनके लिए असम्भव होता है!!!
ज़िन्दगी के रंगमंच की ऐसी कई नायिकाएं अपने परिवार के भरण पोषण मे अपनी पूरी उम्र निकाल देती हैं,लेकिन इन्हें ना तो समाज की सराहना प्राप्त होती है और ना ही श्रेष्ठ अभिनय की तालियां !!
ये नायिकाएं क्या इसकी हकदार नहीं होती ? ऊंचे ऊंचे आदर्शों और आधुनिकता की दौड़ से परे ये भी तो ज़िंदगी के रंगमंच पर अपने किरदार से ,अपने अभिनय से ,अपनी क्षमता का मूल्यांकन करने हमे बाध्य तो करती ही हैं!!!
एक बार फिर दीपू की अम्मा को ज़िंदगी के रंगमंच पर फिर अपना किरदार पूरी शिद्दत से निभाना था, आखिर एक और दीपू को बड़ा जो करना था !!
मौलिक और स्वरचित ""
कीर्ति चौरसिया
जबलपुर ( मध्य प्रदेश)
🤫
01-Dec-2021 02:55 AM
बहुत अच्छी कहानी...
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रतन कुमार
01-Dec-2021 02:03 AM
Kahani ko apne ache abhvo se shabdo ko banda h shubhkamanaye apko
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Payal thakur
30-Nov-2021 06:20 PM
बहुत खूब
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